Some Amazing tales about लखनऊ

आइए हम जानते हैं लखनऊ के बारे में रोचक तथ्य:

लखनऊ प्राचीन इतिहास के दर्पण में:

लखनऊ को पहले लखनावती के नाम से जाना जाता था और इसका मूल स्थान है लक्ष्मण टीला | लक्ष्मण टीला की ही विशाल परिधि पर आज का मेडिकल कॉलेज, बड़ा इमामबाड़ा बना हुआ है| प्राचीन काल में लखनऊ को छोटी काशी के नाम से भी जाना जाता था और लखनऊ का महत्व तीर्थ के रूप में मथुरा एवं काशी के समान था| आज जहाँ टीले वाली मस्जिद है वहीं पर कभी शेष तीर्थ हुआ करता था|

teele wali mazjid लखनऊ
teele wali majzid

लखनऊ के बहुत से कस्बे और गांव ऐतिहासिक है जैसे राजा नहुष से नगराम, बाणासुर की बेटी उषा से रुख, बाणासुर के पार्षद केसरी दैत्य से केसर मऊ, मांडव ऋषि से मड़ियांव आबाद हैं| श्री कृष्ण अपने पुत्र अनिरुद्ध को ढूंढते हुए लखनऊ आए थे, जन्मेजय का प्रसिद्ध नाग यज्ञ यही हुआ था और जो जागीर पंडित जगदेव को दान में दी गयी थी उसी का नाम जुग्गौर हुआ, कुड़िया घाट कुंडल ऋषि का आश्रम माना जाता है|

लखनऊ के प्रसिद्ध चंद्रिका देवी मंदिर की स्थापना लक्ष्मण जी के पुत्र चंद्रकेतु ने की थी| चौक के बड़ी काली के मंदिर में शंकराचार्य जी ने पूजा अर्चना की थी|

लखनऊ में हनुमंत पूजा जैसी होती है वैसी कहीं नहीं होती| बड़ा मंगल लखनऊ का ही प्रधान त्यौहार है, अलीगंज के पुराने मंदिर को मुस्लिम बेगम ने बनवाया था| मंदिर के शिखर पर पर चांद का चिह्न आज भी देखा जा सकता है।

लखनऊ में मोहनलालगंज के निकट हुलास खेड़ा नामक गांव में हड़प्पा कालीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं जो लखनऊ की प्राचीनता सिद्ध करते हैं|

hulas kheda लखनऊ
Hulas Kheda

लखनऊ नवाबी दौर में:

1784 के काल में अपनी बेगार और भूखी जनता को को काम देने के लिए नवाब आसुफद्दौला ने बड़े इमामबाड़ा का निर्माण कराया था| इसे 22000 लोगों ने एक करोड़ की लागत से 7 साल में तैयार किया था|

जब नवाब आसुफद्दौला के नायाब झाऊलाल को बर्खास्त कर दिया गया तब आसुफद्दौला इसे बर्दाश्त ना कर सके, उन्होंने अपने हकीम से पूछा कि “ऐसा कौन सा मर्ज है जिसका कोई इलाज नहीं है | ” हकीम ने कह दिया कि ” पेट भर खाना और फिर तबीयत नहाना |” इसके बाद आसुफद्दौला खाना खाने के बाद गोमती में घंटों नहाते थे , जिससे उनको जालंधर की बीमारी हो गई और जल्द ही वह स्वर्ग सिधार गए|

वाजिद अली शाह जब हुए थे तो उनकी दादी मल्लिका आफ़ाक़ ने इनको जोगिया रंग के कपड़े पहनाए थे ताकि यह भोग विलास के प्रवृत्ति से बचे रहे|

अवध के नवाब बहुत दरिया दिल थे |एक बार बादशाह आसुफद्दौला अपने ऐशबाग में टहल रहे थे, तभी तभी एक लड़का पिंजरे में कबूतर लेकर उनके नजदीक आया | नवाब ने नौकर से ₹1 देने को कहा तो लड़का बोला “हुजूर में सैयदजादा हूँ , कोई चिड़ीमार नहीं | एक महीने पहले मेरा बाप मर गया .मेरे घर में इन कबूतरों के सिवा कुछ नहीं है”

नवाब आसुफद्दौला को बड़ा अफसोस हुआ उन्होंने तुरंत बाग के दरोगा से उसे चांदी के 100 सिक्के दिलवाएं |जब वह लड़का चलने लगा तब दरोगा ने कहा “बड़े नसीब वाले हो दो टके के माल के लिए ₹100 ले लिए “,नवाब ने दरोगा को अपने पास बुलाया और डांटते हुए कहा “क्या हम नहीं जानते कि माल दो टके का है|”

Nawab Asufdaulla
Nawab Asufdulla

नवाबी बेगम भी कम दरिया दिल नहीं थी जिसमें कुदसिया महल काफी प्रसिद्ध थी| एक बार उन्होंने अपनी ड्योरी से देखा कि एक बारात जा रही है,उसमें सब कुछ था परंतु दहेज नहीं था | उन्होंने तुरंत आदेश दिया कि हमारे महल में दुल्हन को दो घड़ी के लिए रोक लिया जाए | उसके बाद दुल्हन को खूब सजाया गया , जेवरों से लाद दिया गया |जब कोठी से बारात आगे बढ़ी तो उसकी कायापलट हो चुकी थी|

एक मजेदार किस्सा है की एक दिन नवाब आसुफद्दौला घोड़े पर सवार होकर घूमने निकले थे ,तभी एक चूहा घोड़े की टॉप से दबकर मर गया | आसुफद्दौला को बड़ा दुख हुआ| उनके उनके साथ चल रहे नौकरों ने कहा ” ज़नाब, चूहा कितना खुश नसीब था जो आपके घोड़े की शाही टाप के नीचे शहीद हो गया| इसके लिए इसका मजार बनवाया जाए और एक यादगार बाग भी लगवाया जाए | “फिर क्या था चूहे की याद में एक बेहतरीन बाग़ तैयार हुआ जिसे मूसा बाग के नाम से जाना जाता है |

moosabagh
Moosa Bagh

लखनऊ का टुडियागंज मोहल्ला महारानी विक्टोरिया के नाम पर बसा है, क्योंकि लखनऊ में लोग महारानी विक्टोरिया को टुडियारानी के नाम से बुलाते थे |

नवाब मोहम्मद अली शाह के समय सतखंडा पैलेस का निर्माण पीसा की प्रसिद मीनार की तर्ज पर कराया जा रहा था परन्तु बीच में ही मोहम्मद शाह की मृत्यु होने पर इसे मनहूस मान कर इसे बीच में ही छोड़ दिया गया इसीलिए इसकी बस चार मंजिलो का निर्माण हो पाया है |

Satkhanda lucknow
Satkhanda Luckn

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