अपने जीवन के किसी भी पड़ाव पर जब हम पीछे झांक कर देखते हैं ,तो हमेशा यह लगता रहता है कि काश मैंने यह न किया होता ,काश यह हो गया होता |यह “काश ” हमें जीवन भर परेशान करता रहता है , हमारी नींदे ख़राब करता रहता है |
अपने जीवन को इस ” काश ” से बचाने के लिए कुछ चीजों पर सदैव ध्यान देना चाहिए|
हर किसी को संतुष्ट करने में मत लगे ,आप “आप” हैं

अपने जीवन का अधिकतर समय हम दूसरों को संतुष्ट करने में लगा देते हैं ,थ्री इडियट्स के ” कपूर साहब क्या कहेंगे “ की तरह सोचने में | जबकि जीवन के सफर में अंत में हम सभी अकेले ही होते हैं ,तब हम जान पाते है की उन लोगो का हमारे जीवन में कोई वास्तविक महत्व था ही नहीं |
बहुत ज्यादा भविष्य को लेकर चिंतित रहना

हम अपने भविष्य को लेकर सदैव असमंजस में रहते हैं ,उसे निश्चित करना चाहते हैं| जबकि जीवन एक धारा प्रवाह नदी है जो मुक्त रूप से बहती रहती है , हम चाहे तो अपने प्रयास से इस नदी को थोड़ा नियंत्रित कर सकते हैं परंतु पूर्णता नियंत्रित करना मनुष्य से परे हैं| हमें तो अपने जीवन रूपी नदी का आनंद उठाते हुए यह नदी जिधर मुड़ रही है उधर ही मुड़ जाना चाहिए| ध्यान रहिए यह अकर्मणयता नहीं ,यह जीवन को सरल और उसका आनंद उठाने की कला है|
हमेशा अपने भाग्य को कोसना
अधिकतर लोग अपने बीते हुए समय में ही जीते रहते हैं | वह यही सोचा करते हैं कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हुआ , मैं ही यह क्यों कर रहा हूं | वह अपने से संतुष्ट नहीं रहते और इसका कारण दूसरों पर ,समय पर , अपने भाग्य पर थोपा करते है | उन्हें लगता है कि संसार के सबसे दुखी व्यक्ति वही है |
जो हो गया उसे तो नहीं बदला जा सकता परंतु यह सोच कर अपना वर्तमान ,भविष्य दोनों ही खराब कर रहे हैं| छोटी छोटी असफलताओ और समस्याओ से भरा जीवन अच्छा है सिवाय इसके कि आपने जीवन भर कुछ किआ ही नहीं |
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में,
वो तिफ़्ल क्या गिरे जो घुटनों के बल चले।

महत्वपूर्ण फैसले लेने से बचाना
आपने विश्व भर के महत्वपूर्ण लोगों की जीवनियों में यह बात अवश्य सामान्य देखी होगी कि उन लोगों ने अपने जीवन के कठिन समय में ऐसा फैसला लिया, जो उनके जीवन में निर्णायक साबित हुआ | आम आदमी और उनमे यही अंतर है हम महत्वपूर्ण फैसले लेने से बचते रहते हैं |
धीरूभाई अंबानी हो ,गोदरेज हो ,टाटा जी हो सभी ने सही समय पर सही फैसले लिए | उनके लक्ष्य बड़े थे , उनमे साहस ज्यादा था |
विचार लो कि मर्त्य हो, न मृत्यु से डरो कभी
मरो, परंतु या मरो, कि याद जो करें सभी।
ना कहना सीखे
पिंक मूवी का यह डायलॉग “No means No “ इसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें | जो चीज आपको नहीं आती है या जो आप नहीं करना चाहते उसके लिए ना कहना सीखे| जब हम इस डर से की दूसरे नाराज ना हो , हर बात पर “हां” कहना शुरू कर देते हैं वहीं से हमारी समस्या शुरू हो जाती है | जो हमारे सिद्धांतों के खिलाफ हो ,जो आप नहीं कर सकते उसके लिए ना कहना सीखिए |
जीवन साध्य है साधन नहीं
हम लोगों ने अपने जीवन को एक साधन बना लिया है अपनी भौतिक इच्छाओं की पूर्ति करने का| हमें समझना होगा कि हमारा जीवन स्वयं में साध्य है, लक्ष्य है , यह किसी चीज को पूरा करने का साधन नहीं है | हमारा विचार बन चुका है ” मैं उपभोग करता हूं इसलिए मैं हूं” जबकि होना यह चाहिए कि “मैं हूं इसलिए उपभोग करता हूं” |दुनिया में जितनी चीज बनी हुई है ,यह मनुष्य के जीवन को सरल और आनंदित करने के लिए बनी हुई है पर हम उन चीजों को लक्ष्य मानकर उनको इकट्ठा करने के लिए लगे रहते हैं | इकट्ठा करने से कभी भी सुखी नहीं हो सकते|
दूसरों पर जरूरत से ज्यादा निर्भर होना
हमेशा यह ध्यान दीजिएगा जब भी हम दूसरों पर हद से ज्यादा निर्भर हो जाते हैं तब हम अपने लिए स्वयं कुचक्र बुन रहे होते है| कोई भी व्यक्ति अपने अनुभवों के आधार पर ही आपको सलाह दे सकता है , वह आपकी क्षमताएं नहीं जान सकता| अगर आप दूसरों से यह पता करने में लगे रहेंगे “क्या आपको क्या करना चाहिए “तो आप कुछ नहीं कर पाएंगे क्योंकि आपकी क्षमताएं और समस्याएं आपकी स्वयं की होती है|
एक प्रसिद्ध दार्शनिक विट्गेन्स्टाइन ने कहा था ” दर्द हमेशा निजी होता है जो कोई कहता है कि उसे भी वैसा दर्द है जैसा आपको है तो वह अनुमान लगा रहा होता है| “ अगर चंद्रशेखर आजाद ,भगत सिंह, दिलीप कुमार इन सब ने दूसरों से सलाह ली होती तो आज यह सब महान विभूतियां ना होती|