The Great Martyr करतार सिंह सराभा “अफ़लातून” : शहीदे आज़म भगत सिंह का आदर्श एवं प्रेरणा 24 मई 1896 -16 नवंबर 1915

करतार सिंह सराभा
kartar singh

सेवा देश दी जिंदरिये बारी औखी, गलां करनियां ढेर सुखलियां ने, जिन्हां देश सेवा विच जोड़ी पया, उन्हां लाख मुसिब्तां झलियां ने

(देशभक्ति का मार्ग कठिन है भाषण देना काफी आसान है। जो लोग मातृभूमि की सेवा के मार्ग पर चलते हैं उन्हें अनगिनत पीड़ाएँ सहनी पड़ती हैं)

भगत सिंह की गिरफ्तारी पर, उनके पास से शहीद करतार सिंह सराभा की एक तस्वीर बरामद हुई थी। यह फोटो वह हमेशा अपनी जेब में रखते थे। भगत सिंह कहा करते थे यह मेरा हीरो, दोस्त और साथी है।

gadar party heroes
Gadar Party Heroes

करतार सिंह: प्रारम्भिक जीवन

करतार सिंह सराभा का जन्म १८९६ में सराभा गांव (लुधियाना जिले ) में हुआ था | बचपन में इनके सहपाठी इन्हे अफलातून कहा करते थे | उड़ीसा के रेवेंशा कॉलेज से फर्स्ट डिग्री की पड़े समाप्त करके ये अमेरिका उच्च डिग्री प्राप्त करने के लिए चले गए | उस दौर में, जब भी कोई भारतीय अमेरिका में प्रवेश करता था, आप्रवासन विभाग के अधिकारी अक्सर उनसे जानबूझकर तैयार किए गए कई कठिन और गंभीर सवाल पूछते थे जिससे व्यक्ति निराश और अपमानित होकर वापस आ जाता था |

1912 में, सैन फ्रांसिस्को हवाई अड्डे पर उतरने के बाद, आव्रजन अधिकारियों ने उन्हें विशेष पूछताछ के लिए अलग कर दिया। अधिकारी द्वारा पूछे जाने पर “यदि आपको उतरने की अनुमति नहीं दी गई तो?” करतार सिंह ने कहा, ” विश्व की प्रगति रुक जाएगी अगर विद्यार्थियों के मार्ग में बाधा डाली जाएगी। कौन जानता है कि यहाँ की शिक्षा मुझे दुनिया की भलाई के लिए कोई बड़ा काम करने में सक्षम बना सकती है? क्या दुनिया को उस महान कार्य की कमी का खामियाजा नहीं भुगतना पड़ेगा अगर मुझे उतरने की अनुमति नहीं दी गई?” उनके उत्तर से प्रभावित होकर अधिकारी ने उन्हें उतरने की अनुमति दी।

अपने देश के प्रति सम्मान की कमी ने उन्हें परेशान किया। करतार सिंह अपने कुछ साथियो के साथ लाला हरदयाल के समक्ष एक पत्र को प्रकाशित करने का प्रस्ताव लेकर उपस्थित हुए| इस प्रकार “ग़दर पत्रिका” का प्रकाशन आरम्भ हुआ धीरे धीरे इसी ने “ग़दर पार्टी” का संगठन कर दिया |

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Gadar di gunj

करतार सिंह :1915 विप्लव

भारत वापस लौट कर यह ग़दर आंदोलन के लिए जी जान से जुट गए | प्रतिदिन साइकिल पर बैठकर ७०-८० किलोमीटर घूमते थे , गाँव-गाँव काम करते थे ,इतना करने पर भी थकते नहीं थे | 21 फरवरी 1915 ग़दर आंदोलन के लिए दिन निश्चित किआ गया था परन्तु कृपाल सिंह की गद्दारी के कारण ग़दर आंदोलन एक दिन पहले असफल हो गया | ब्रिटिश सरकार सतर्क हो गयी, पूरे देश में कई गिरफ्तारियां हुई फिर भी करतार सिंह ने हार नहीं मानी | ऐसे ही प्रयास में जब ये सरगोधा में २२ बटालियन के सैनिको को विद्रोह के लिए मानाने गए थे तभी रिसालदार गंडा सिंह ने इन गिरफ्तार करवा दिए |

जब मुकदमा शुरू हुआ तब करतार सिंह केवल साढ़े 18 साल के थे। वह सभी आरोपियों में सबसे छोटा था। हालाँकि, न्यायाधीश ने लिखा: “वह इन 61 अभियुक्तों में से सबसे महत्वपूर्ण में से एक है; और उन सभी में सबसे बड़ा दस्तावेज़ है। अमेरिका, समुद्री यात्रा और भारत में व्यावहारिक रूप से इस षडयंत्र का कोई भाग ऐसा नहीं है, जिसमें इस अभियुक्त ने अपनी भूमिका न निभाई हो।” जज ने इन्हे “सबसे खतरनाक “ बताया और इन्हे मृत्युदंड दे दिया|

जब करतार सिंह के दादा इनसे मिलने आये। “आपके जीवन की कौन सी विशेष घटना ने आपको मृत्यु की देवी का उपासक बना दिया?” उन्होंने करतार से पूछा “जिनके लिए आप अपना जीवन दे रहे हैं, वे आपको उल्टा सीधा बुलाते हैं। मैं भी नहीं मानता कि आपकी मृत्यु देश को कुछ लाभ देगी।’

lahore central jail

करतार ने उनसे बोला ” दादाजी वह व्यक्ति कहाँ है ? प्लेग से मर गया या हैजा से ?क्या आप चाहते हैं कि करतार सिंह किसी ऐसी बीमारी से मर जाए और बिस्तर पर पड़ा रहे और दर्द से कराहता रहे? क्या ऐसी मृत्यु इससे अच्छी नहीं है? दादा निरुत्तर हो गए | १6 नवंबर 1915 को सेंट्रल जेल लाहौर में फांसी दे दी गयी| जिसने कई युवाओं को देश के लिए संपूर्ण बलिदान करना सिखाया , जिनसे शहीदे आज़म भगत सिंह ने भी प्रेरणा ली |

करतार सिंह सराभा की यह ग़ज़ल शहीद भगत सिंह को बहुत पसंद थी जिसे भगत सिंह अक्सर गुनगुनाया करते थे

यहीं पाओगे महशर में जबां मेरी बयाँ मेरा,

मैं बन्दा हिन्द वालों का हूँ है हिन्दोस्तां मेरा;

मैं हिन्दी ठेठ हिन्दी जात हिन्दी नाम हिन्दी है,

यही मजहब यही फिरका यही है खानदां मेरा;

मैं इस उजड़े हुए भारत का यक मामूली जर्रा हूँ,

यही बस इक पता मेरा यही नामो-निशाँ मेरा;

मैं उठते-बैठते तेरे कदम लूँ चूम ऐ भारत!

कहाँ किस्मत मेरी ऐसी नसीबा ये कहाँ मेरा;

तेरी खिदमत में अय भारत! ये सर जाये ये जाँ जाये,

तो समझूँगा कि मरना है हयाते-जादवां मेरा.

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