दुश्मन की गोलियों का सामना करेंगे |
आज़ाद है ,आज़ाद ही रहेंगे ||

चंद्रशेखर आजाद का जन्म और प्रारम्भिक जीवन:
चंद्रशेखर आजाद जी का जन्म भरावा गांव (झाँसी ) में 23 जुलाई 1906 हुआ था| कुछ लोग मानते हैं कि इनका जन्म बदरका (उन्नाव) में हुआ था परंतु यह सही नहीं है इनके पिता सीताराम तिवारी जी किन्ही कारण से बदरका गांव को छोड़कर भावरा गांव में बस गए थे | यह बात सत्य है इनके पूर्वज उन्नाव के बदरका गांव के रहने वाले थे|
चंद्रशेखर आजाद बचपन से ही बहुत निर्भीक थे | एक बार की बात है कि इनको पढ़ाने वाले मनोहर लाल जी ने इनकी परीक्षा लेने के लिए इनको शब्द गलत बता दिए इन्होंने तुरंत ही छड़ी उठाकर उन्हें मार दिया | पिता द्वारा क्रोधित होने पर होने पर कि “तुमने क्यों मारा “इन्होंने जवाब दिया “जब हम गलती करते हैं तब यह हमको मारते हैं फिर इनके गलती करने पर इनको क्यों ना मारे“

चंद्रशेखर आजाद जी ने कुछ समय भावरा रहने के बाद अलीराजपुर में नौकरी कर ली पर इनका मन उसमें ना लगा | एक दिन यह नौकरी छोड़कर मुंबई चले गए; वहां जाकर उन्होंने मजदूरी की ,जहाज पर पेंटिंग की और मजदूरों के साथ रहे|
मुंबई में ही चंद्रशेखर आजाद ने खूब सिनेमा दिखा इसीलिए बाद में अक्सर कहां करते थे कि “अब मेरा सिनेमा देखने का मन नहीं करता इतना देख चुका हूं |“इसी बात के लिए यह अपने साथियों से कहा करते थे कि “कहीं तुम सिनेमा देखते हुए ना पकड़े जाओ| “अंत में उनके साथी विजय कुमार सिनेमा देखते हुए ही पकड़े गए|

चंद्रशेखर आजाद क्रांतिकारिता के दिनों में:
एक मजेदार प्रसंग है एक बार चंद्रशेखर आजाद ने लाहौर में भगत सिंह ,भगवान दास, विजय तीनो के डेढ़ रुपए सुबह एवं शाम के खाने के लिए भगवान दास को दिए| तीनो जा ही रहे थे तभी भगत सिंह को टॉम बाबा की कुटिया (uncle tom’s cabin) का पोस्टर दिखा|
भगत सिंह अपने चित्र परिचित अंदाज में ऐसी पिक्चर क्यों देखी जाए इस पर भगवान दास को लंबा चौड़ा व्याख्यान देने लगे पर भगवान दास पैसे देने को राजी नहीं हुआ तो जब यही बहस बहस चल ही रही थी तब भगवान दास ने कहा कि “भगत यह रुपए मैं तुम्हें दे नहीं रहा हूं तुम मुझे छीन रहे हो “
भगत सिंह ने भी तपाक से बोला कि “यह भी मान लो मैं तुम्हें पीट-पीट कर चवन्नी के तीन टिकट लाने को बोल रहा हूं| ” बाद में यही बात भगत ने चंद्रशेखर को भी बताई कि यह मूवी देखना क्यों जरूरी था| चंद्रशेखर आजाद मंद मंद मुस्कुराते रहें, उनका भगत सिंह पर बहुत स्नेह था|
एक बार संपूर्णानंद जी ने आजाद को कांग्रेस की एक नोटिस को कोतवाली के पास चिपकाने के लिए कहा | आजाद ने हां तो कर ली परंतु कोतवाली पर बहुत कड़ा पहरा था| आजाद ने नोटिस अपनी पीठ पर हल्का सा चिपक कर उसकी उल्टी तरफ काफी काफी गोंद काफी लगा दिया और कोतवाली के पास जाकर एक खंभे से टेक लगा कर खड़े हो गए | वहीं एक पुलिस वाला भी खड़ा था |
वह पुलिस वाले से बातें करने लगे इसी बीच उन्होंने खंबे से लगे लगे नोटिस चिपका दिया और वहां से चल दिए| पुलिस हैरान रह गई कि इतने कड़े पहरे के बावजूद किसने यहां नोटिस चिपकाई|
राम प्रसाद बिस्मिल चंद्रशेखर आजाद को क्विकसिल्वर कहा करते थे क्योंकि यह सदैव एक्शन के लिए तैयार रहते थे ,इनका निशाना बड़ा ही अचूक था|
एक बार गणेश शंकर विद्यार्थी जी ने उनके माता-पिता की आर्थिक सहायता के लिए ₹200 इनको दिए थे पर चंद्रशेखर जी ने वह रुपए संगठन के कार्य हेतु खर्च कर दिए | बाद में जब गणेश शंकर विद्यार्थी आजाद जी से मिले तो उन्होंने घर पैसे भेजने की बात पूछी तो आजाद बोले “उन बूढ़ा बुढ़िया के लिए पिस्तौल की दो गोलियां काफी है|” फिर बोले “विद्यार्थी जी गुलाम देश में लाखों परिवार ऐसे हैं जिन्हें एक समय भी रोटी नसीब नहीं होती| मेरे माता-पिता तो दिन में एक बार भोजन पा ही जाते हैं, वह भूखे रह सकते हैं पर पैसे के लिए पार्टी के सदस्यों को भूखो नहीं मरने दूंगा “ऐसे थे आजाद|
चंद्रशेखर आजाद संगठन के लिए गाजीपुर में एक महंत के चेले बनकर भी रहे |उनका मानना था कि साल दो साल में यह महंत मर जाएगा और इसकी सारी संपत्ति हम अपने संगठन में लगा सकेंगे| आजाद जी को यह बड़ा उबाऊ लगा और दो-तीन महीने में ही उन्होंने आश्रम छोड़ दिया और अपने कर्म में जुड़ गए|
चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु को फांसी से बचने के लिए प्रयागराज में जवाहरलाल नेहरू के पास भी गए थे परंतु जवाहरलाल ने अपनी मजबूरी प्रकट की| इससे चंद्रशेखर आजाद बहुत नाराज हो गए थे|