यात्री और बूढ़ा बाघ- Inspiring Hindi Short Story part 2

बाघ  hindi short story

एक समय, जंगल में एक बूढ़ा बाघ बाघ स्नान कर रहा था और कंगन को हाथ में लिए हुए कह रहा था – “हे यात्रियों मेरे हाथ में इस सोने के कंगन को ले लो।” एक यात्री ने मन में सोचा – “यह सोने का कंगन भले ही अभीष्ट वस्तु की तरह लग रहा हो, परंतु बाघ के पास जाना जीवन को खतरे में डाल सकता है।”

उसने आगे सोचा “इसलिए, यह सोने का कंगन भला ही धन पैदा करने का स्रोत हो, परंतु संदेहपूर्ण स्थान से इसे लेना उचित नहीं है।”

“अनिष्ट स्थान ,बाघ इत्यादि से सोने के कंगन जैसी अभीष्ट वस्तु का लाभ कल्याण नहीं कर सकता, क्योंकि जिस अमृत में जहर हो, वह अमृत नहीं, मौत का कारण है।” और वह यह भी सोचता है कि , “बिना किसी संदेहपूर्ण कार्य में बिना पग बढ़ाए कल्याण होना संभव नहीं है। हाँ, संदेहपूर्ण कार्य करने पर यदि विजयी रहता है, तो कल्याण का आनंद लेता है।” इस प्रकार वह यात्री दुविधा में पड़ गया |

इसलिए इसने बाघ की सत्यता की जाँच करने की कोशिश करते हुए कहा, “कहाँ है तुम्हारा कंगन?” बाघ ने हाथ फैलाकर दिखाया। यात्री ने बोला, “मुझे तुममें विश्वास कैसे हो सकता है? तुम तो मेरे लिए खतरा हो!”

बाघ ने कहा “मुझे इतना लोभ नहीं है कि मैं अपने हाथ में रखे हुए सोने के कंगन को किसी अनजान व्यक्ति को दे दूं | परंतु बाघ मनुष्य का भक्षक है, इस बात को झुटलाया नहीं जा सकता।”

“जिस प्रकार रेगिस्तान में वर्षा सफल होती है, जिस प्रकार भूख से पीड़ित को भोजन देना सफल होता है, उसी तरह दरिद्र को दिया गया दान सफल होता है।”

बाघ ने आगे बोला “प्राण जैसे अपने प्यारे होते है वैसे ही सभी जीवो को अपने प्राण प्यारे होते है |
इसी प्रकार सज्जन लोग अन्य प्राणियों के प्रति भी दया भाव रखते हैं।
निषेध और दान, सुख और दुःख, प्रिय और अप्रिय स्थितियों में, सज्जन व्यक्ति अपने अनुभव को अन्यों के साथ तुलना करता है; इसका अर्थ है, यदि कोई मुझे कुछ देता है, तो मुझे हर्ष होता है, और अगर कोई अनादर करता है, तो दुःख होता है। इस प्रकार, मैं भी किसी को कुछ देने पर हर्षित होता हूँ, और यदि कोई किसी से चीज़ मना करता है, तो दुःखी होता हूँ।

मातृतुल्य प्रेम के साथ, दूसरों की स्त्रियों को अपनी माता के समान और दूसरों की धन-संपत्ति को मिट्टी के ढेले के समान देखने वाला व्यक्ति वास्तविक ज्ञानी है।”
इस तरह की मीठी मीठी बातें बोलकर बाघ ने यात्री को विश्वाश दिला दिया की वह बहुत धार्मिक है | बाघ ने यात्री से कहा कि नदी में स्नान करके कंगन ले लो ,यात्री जैसे ही नदी में उतरा वह कीचड में फस गया तब बाघ बोला “रुको ! मैं तुम्हारी मदद करता हू “

यात्री मन ही मन सोचने लगा “जो दुष्ट है उसे धर्मशास्त्र और वेद पढ़ाने से क्या होता है जिस तरह हांथी का स्नान निष्फल है क्यूंकि हांथी स्नान करने के तुरंत बाद धूल को अपने ऊपर सूंड से फेकता है | ” यात्री आगे विचार करता है कि ” स्वाभाव ही सबसे प्रबल है जिस प्रकार गाय का दूध स्वाभाव से ही मीठा होता है | “

यह सोचते-सोचते ही, उसको बाघ ने मार डाला और खा गया।

शिक्षा -इससे हमें यह सिखने को मिलता है कि बिना विचारे किसी लालच से काम कभी नहीं करना चाहिए और सबसे पहले मनुष्य के स्वाभाव की परीक्षा क्यूंकि स्वाभाव ही सब गुणों में सबसे श्रेष्ठ है |

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